सूत्र :न सद्यः कालान्तरोपभोग्यत्वात् II4/1/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक कर्म का फल शीघ्र नहीं मिलता बहुत से कर्म ऐसे हैं कि उनका फल कालान्तर या जन्मान्तर में मिलता है।
व्याख्या :
प्रश्न- हम बहुत से कर्मों का फल शीघ्र मिलता हुआ देखते हैं।
उत्तर-कर्म दो प्रकार के हैं एक भोक्तव्य और दूसरे कत्र्तव्य। जैसे बोना और काटना दोनों कर्म है, पर बोने का फल देर से, काटने का फल शीघ्र मिलता है। इनमें बोना कत्र्तव्य और काटना भेक्तव्य है। अतएव जो कर्म कत्र्तव्य हैं अर्थात् आगे के वास्ते किये जाते हैं, उनका फल देर से मिलता है और जो भेक्तव्य हैं अर्थात् भोगने के लिए हैं, उनका फल शीघ्र मिलता है। वादी फिर शंका करता हैः-