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दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :अविज्ञाततत्त्वेऽर्थे कारणोपपत्तितस्तत्त्वज्ञानार्थमूहस्तर्कः II1/1/40
सूत्र संख्या :40

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिस वस्तु के तत्व को ठीक तौर पर न जानते हों उसके जानने की इच्छा का नाम जिज्ञासा है अर्थात मैं उस वस्तु के तत्व को जान लूं और जिस वस्तु के जानने की इच्छा है उसके गुणों को अलग-अलग करके विचार करना कि क्या यह पदार्थ इस प्रकार का है या उस प्रकार का और पदार्थ के तत्व के विचार करने में जो रूकावटें पैदा होती हैं जिससे ख्याल हो सकता है कि ऐसा हो सकता या नहीं इस प्रकार के बार-बार के सन्देह पैदा करने का नाम तर्क है। यह जो जानने वाला जानने योग्य वस्तु को जानता है फिर उसमें विचार करता है कि क्या यह वस्तु जन्य है या अनादि है इस प्रकार जिस विशेषण का ठीक न हो उसमें विचार करना कि यदि यह जन्य है तो ऐसे किये हुए कर्मों का फल भोगने के लिए पैदा होता है या कोई और सबब (कारण) है।

व्याख्या :
प्रश्न-तर्क करने का प्रयोजन क्या है ? उत्तर-वस्तु के वास्तविक रूप को जानना क्योंकि जिस वस्तु की तात्विक स्थिति को ठीक नहीं जानते उससे प्रायः अनिष्ट होता है । प्रश्न-तर्क कितने प्रकार का है ? उत्तर-पांच प्रकार का आत्मश्रय, अन्योन्याश्रय, चकिकाश्रय, अनवस्था , तदन्यवाधता प्रसंग। प्रश्न-आत्माश्रय किसे कहते हैं ? उत्तर-स्वंय ही पक्ष हो स्वयं ही हेतु-अर्थात् अपनी प्रतिज्ञा को सिद्ध करने के लिये उस प्रतिज्ञा को प्रमाण बताना -उदाहरण किसी ने पूछा कि कुरान के ईश्वरीय वचन होने में क्या प्रमाण है- उत्तर दिया कुरआन में लिखा है। प्रश्न-अन्योन्याश्रय किसे कहते है ? उत्तर-जहां दो वस्तुओं की सिद्धि एक-दूसरे के बिना सिद्ध न हो सके -जैसे किसी ने कहा खुदा की सत्ता में क्या प्रमाण है-उत्तर-दिया कुरआन का लेख, अब प्रश्न हुआ कि कुरआन के सच्चा होने का क्या प्रमाण है-कलाम इलाही होना -इस प्रकार बातचीत ठीक नहीं हो सकती एक विश्वस्त साक्षी अपनी साक्ष्य से दूसरे को विश्वस्त सिद्ध कर सकता है और दो अविश्वस्त एक दूसरे को विश्वस्त सिद्ध करने से श्रद्धेय नहीं हो सकते । प्रश्न-किस प्रकार विवेचना हो सकती है ?

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