DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :साध्यसाधर्म्यात्तद्धर्मभावी दृष्टान्त उदाहरणम् II1/1/36
सूत्र संख्या :36

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : साघ्य के सदृश धर्म वाला होने से उन दोनों के धर्म की समता करना उदाहरण है और साध्य दो प्रकार के होते हैं एक गुणी दूसरे गुण -जैसे किसी ने कहा कि शब्द में अनित्यत्व है अर्थात् वह नाश होने वाला है दूसरे शब्द अनित्य है। हर एक वस्तु में अनित्यत्व दिखाई पड़ता है।

व्याख्या :
प्रश्न-अनित्य किसे कहते हैं ? उत्तर-सत्तावान् (जिसकी सत्ता सम्भव हो) को जिसका उत्पन्न होना और नाश होना आवश्यक हो । प्रश्न-अनित्यत्व क्या वस्तु है ? उत्तर-उत्पत्ति का होना -अब जो वस्तु उत्पन्न हुई-हुई होगी । उसमें अनित्यत्व के उपस्थित होने से उसका अनित्य होना आवश्यक है जहां उत्पत्ति का अभाव होगा वहां अनित्यत्व का भी अभाव होगा अर्थात् कोई पैदा हुई-हुई वस्तु शेष नहीं रह सकती और न कोई अनादि वस्तु अनित्य हो सकती है। प्रश्न-क्या उदाहरण धर्मों के समान होने में ही दिया जा सकता है या कोई अन्य दशा भी है ?

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