सूत्र :तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् II1/1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बहुत से अवसरों पर गुणों के वैधम्र्म से भी उदाहरण दिया जाता है जैसे किसी ने कहा शब्द अनित्य है उत्पत्ति वाला होने से जो उत्पत्ति वाला नहीं है वह अनित्य नहीं जैसे आत्मा परमात्मा आदि। यह आत्मादि का दुष्टान्त विरूद्ध धर्मों से दिया गया है क्योंकि शब्द को अनित्य सिद्ध करना था जिसके लिए उत्पत्ति वाला होने युक्ति देकर उदाहरण के समय बतलाया कि जो उत्पन्न हुआ-हुआ नहीं वह अनित्य नहीं जैसे आत्मादि इस उदाहरण से सिद्ध किया कि उत्पन्न हुई-हुई चीजें (वस्तुएं) अनित्य हैं उसका कारण स्पष्ट यह है कि एक किनारा वाला नद संसार में दृष्टि नहीं आता इस दृष्टान्त में उत्पत्ति का अभाव ही अनित्य होने से पृथक् रखने वाला बताया गया । उत्पत्ति और नाश यह दो किनारे हर एक सत्तावान् कार्य द्रव्य के हैं अतः एक किनारा वाला कोई हो नहीं सकता यह जानकर ऊपर लिखा उदाहरण दिया गया। अतः जहां उदाहरण साध्य वस्तु के विरूद्ध धर्मों में दी जाय जैसे उत्पत्तिमान को अनित्य बतलाने के लिए अनादि वस्तु को शिष्यमाण (नित्य) बतलाया और जहां सधर्म्य लेकर किसी पदार्थ का उदाहरण देकर उसके अनुकूल धर्म को सिद्ध किया। अतः दोनों प्रकार के उदाहरण अर्थात् दृष्टान्त हो सकते हैं ?
प्रश्न-उपनय किसे कहते हैं ?