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दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :हेत्वपदेशात्प्रतिज्ञायाः पुनर्वचनं निगमनम् II1/1/39
सूत्र संख्या :39

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जहां साधर्म्य या वैधम्र्म से पक्ष को सिद्ध करके फिर दुहराना है उसे निगमन कहते हैं जैसे किसी ने पक्ष स्थापना की कि पर्वत में अग्नि है जब इस प्रतिज्ञा के लिए हेतु मांगा तो कहा धुएं के होने से जाना जाता है जब फिर उदाहरण पूछा कि क्या प्रमाण है जहां धुआं हो वहां आग होगी तब उत्तर मिलता है कि रसोई धर में आग से धुआँ निकलता देखा हैं। अतः पर्वत में भी आग से धुआं निकलता है जहाँ धुआँ होगा वहीं आग होगी अतः पर्वत में अवश्य ही आग है।

व्याख्या :
प्रश्न-प्रतिज्ञा को पृथक् बतलाइए ? उत्तर-पर्वत में आग है यह प्रतिज्ञा है (धूमवत्वात्) धूमवाला होने से यह हेतु है। रसोईधर में आग से धुएं का निकलना उदाहरण है। और जहाँ-जहाँ धुआं होगा वहीं आग होगी यह उपनयन है ऐसे ही पहाड़ में यह आग है यह निगमन है। प्रश्न-तर्क किसे कहते हैं ?

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