सूत्र :अनिमित्ततो भावोत्पत्तिः कण्टकतैक्ष्ण्यादिदर्शनात् II4/1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे बिना निमित्त के स्वभाव ही से कांटों में तीखापन और पहाड़ी धातुओं में भिन्न-भिन्न वर्ण गुण देखने में आते हैं। ऐसे ही मनुष्यादि प्राणियों के शरीर भी बिना किसी ईश्वर या कर्मफल आदि के निमित्त के स्वभाव से उत्पन्न होते हैं। इस खण्डन करते हैं-