DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

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सूत्र :सर्वमनित्यमुत्पत्तिविनाशधर्मकत्वात् II4/1/25
सूत्र संख्या :25

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो वस्तु होकर न रहे, वह अनित्य कहलाती है, अर्थात् जो उत्पत्ति से पूर्व न हो और नाश के पश्चात् न रहे, वह अनित्य है। जबकि शरीरादि भौतिक पदार्थ और बुद्धयादि अभौतिक पदार्थ सब उत्पन्न होगर नष्ट होने वाले हैं, इसलिएवे सब अनित्य हैं इसका खण्डन करते हैः

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