सूत्र :तदनित्यत्वमग्नेर्दाह्यं विनाश्यानुविनाशवत् II4/1/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वह अनित्या भी अनित्य है, जैसे अग्नि दाह्य इन्धनादि को नष्ट करके आप भी नष्ट हो जाता है। ऐसे ही अनित्या भी सब पदार्थों का नाश करके आप भी नष्ट हो जाती है। अब सूत्रकार अपना मत दिख्लाते हैं-