सूत्र :क्रमनिर्देशादप्रतिषेधः II4/1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बीज के गलने और अंकुर निकलने का जो सिलसिला है, उसको त्रम कहते हैं, पहले बीज जब गल जाता है तब उससे अंकुर उत्पन्न होता है। बीज गलने से नष्ट हजो जाता है किन्तु उसकी बनावट में कुछ परिणाम होकर अंकुर लाने में समर्थ हो जाता है। यदि नष्ट बीज से अंकेरोत्पत्ति होती तो जला या पिसा हुआ बीज भी अंकुर उत्पन्न कर सकता, परन्तु ऐसा नहीं हो सकता, इससे सिद्ध है कि अभाव से भाव की उत्पत्ति नहीं हो सकती। कर्म स्वयं फल देते हैं या कोई औश्र फल देने वाला है?