DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :अपरीक्षिताभ्युपगमात्तद्विशेषपरीक्षणमभ्युपगमसिद्धान्तः II1/1/31
सूत्र संख्या :31

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : साधारण रूप से किसी वस्तु का ज्ञान होने के पश्चात् उसके धर्मों की परीक्षा का आरम्भ कर दिया जाए तो वह अभ्युपगम सिद्धांत कहलाता है यथा “शब्द द्रव्य है” ऐसा मान कर यह परीक्षा करना कि शब्द रूप द्रव्य नित्य है वा अनित्य है । शब्द की सत्ता को स्वीकार करके उसके नित्यत्व और अनित्य का विचार करना अभ्युपगम सिद्धान्त कहलाता है(?) । प्रश्न-अवयव किसे कहते हैं ?

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