सूत्र :यत्सिद्धावन्यप्रकरणसिद्धिः सोऽधिकरणसिद्धान्तः II1/1/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस बात के सिद्ध हो जाने से अन्य बातें स्वयं सिद्ध हो जाएं और उसके सिद्ध न हों अर्थात् जिसकी सिद्धि अन्य की सिद्धि पर ही निर्भर हो तो जिसकी सिद्धि स्वीकृत होने से और बातें स्वतः सिद्ध हो जाएं वह अधिकरण सिद्धान्त है, यथा - शरीर, इन्द्रियों से जानने वाला आत्मा पृथक है क्योंकि दर्शन या स्पर्शन से एक ही वस्तु को जानने से प्रतीत होता है कि यदि आत्मा शरीर तथा इन्द्रियों से पृथक न होता तो इन्द्रियों को अपने नियत विषय का ज्ञान तो होता परन्तु जिस अर्थ को दूसरे इन्द्रिय ने ग्रहण किया है उसका ज्ञान न होता जैसे एक वस्तु बूढ़े को आंख से देखती है और हाथ से पकड़ कर कहता है कि जिसको देखा था उसे उठाता हूं, यदि शरीर तथा इन्द्रियें ही आत्मा होती तों ऐसा ज्ञान नहीं होना चाहिए था क्योंकि दिखाई तो आंख से दिया था और उठाया गया हाथ से और कहता है कि जिसको मैनें देखा था उसे उठाता हूं। अतः यह सिद्ध हूआ कि हर एक इन्द्रियादि द्वारा से जानने वाला कोई और है इसी का नाम अधिकरण सिद्धान्त हैं।
व्याख्या :
प्रश्न-नियत विषय किसे कहते हैं ?
उत्तर-ज्ञाता और ज्ञान से भिन्न किसी द्रव्य में रहने वाले जो गुण हैं , वे नियत विषय हैं। यह सब विषय आत्मा के शुद्ध होने से शुद्ध हो सकते हैं अन्यथा नहीं ।
प्रश्न-अभ्युपगम सिद्धांत किसे कहते हैं ?