DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :तददृष्टकारितमिति चेत्पुनस्तत्प्रसङ्गोऽपवर्गे II3/2/73
सूत्र संख्या :73

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : यदि शरीर की उत्पत्ति का कारण अदृष्ट(प्रारब्ध) को माना जावे तो मुक्त जीवों के शरीर की उत्पत्ति भी माननी पड़ेगी, क्योंकि कर्म और जीवात्मा का सम्बन्ध तो इच्छा होने पर होता है, राग द्वेष के निवृत्त होने पर नहीं होता। पर जब शरीर की उत्पत्ति का कारण प्रारब्ध को माना जावेगा तो मुक्त और बद्ध दोनो के लिए शरीर मानना पड़ेगा। अब इसका उत्तर देते हैं:-