DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :मनः-कर्मनिमित्तत्वाच्च संयोगानुच्छेदः II3/2/75
सूत्र संख्या :75

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : . यदि अदृष्ट कारण को मन का गुण माना जावे तो शरीर से मन का वियोग कभी न होना चाहिए। क्योंकि मन किसी दूसरे कारण से तो शरीर में गया नहीं, केवल अपने गुण अदृष्ट के कारण से गया है और वह जब तक मन रहेगा, अवश्य ही रहेगा, क्योंकि गुणी बिना गुण के कभी रह नहीं सकता। परन्तु मन का इन्द्रियों के साथ संयोग जो दुख-सुख आदि का कारण है, सदा रह नहीं सकता। इसलिए अदृष्ट जो शरीर की उत्पत्ति का कारण है, मन का गुण नहीं। मन का संयोग सदा क्यों नहीं रहता:-