DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :एतेना-नियमः प्रत्युक्तः II3/2/71
सूत्र संख्या :71

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : . इससे अनियम का खण्डन होता है अर्थात् सृष्टि की रचना में नियम देखने में आता है, यदि इस सृष्टि का कोई चेतनकर्ता न होता तो सृष्टि के पदार्थों में कोई नियम न होता, किसी से किसी की उत्पत्ति हो जाती। यदि शरीरों की रचना में पूर्व कर्म कारण न होते तो सुख-दुःख की व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती। अतएव पूर्वकृत कर्म शरीरादि का निमित्त हैं। पुनः इसी की पुष्टि करते हैं:-

व्याख्या :
कर्म के नाश हो जाने पर अर्थात् जब भोगते-भोगते कर्म समाप्त हो जाते हैं, तब शरीर से आत्मा अलग हो जाती है और शरीर की उत्पत्ति में कर्म को निमित्त न मानोगे तो पच्चभूतों के नाश न होने से शरीर और आत्मा का वियोग कभी न होगा। दूसरी शंका करते हैं:-