सूत्र :नित्यत्वप्रसङ्गश्च प्रायणानुपपत्तेः II3/2/76
सूत्र संख्या :76
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . जिन कर्मों का फल भोगने के लिए जीवात्मा शरीर में आया था उसके भोगने के बाद मृत्यु हो जाती है और दूसरे कर्मों का फल भोगने के लिए और जन्म होता है। कर्म को निमित्त न मानकर यदि केवल भूतों से शरीर की उत्पत्ति मानी जावे या मन के संयोग से देहोत्पत्ति मानी जावे, तब ऐसी दशा में मृत्यु का होना असम्भव होगा - क्योंकि भूत या मन जब रहेंगे, तब तक शरीर भी बना रहेगा।
व्याख्या :
प्रश्न - हम कहते है कि किसी आकस्मिक कारण से मृत्यु हो जाती है।
उत्तर - वह आकस्मिक कारण भूतों से पृथक किसी का गुण हैं, या भूतों का ? यदि कहो भूतों का है तो दो विरुद्ध धर्म भूत में नहीं रह सकते अर्थात् वही संयोग का कारण हो और वही वियोग का। यदि कहो भूतों से अलग कोई गुण हैं, तो उसी को हम कर्मफल कहते हैं। इस पर वादी आक्षेप करता है।