सूत्र :शरीरोत्पत्तिनिमित्तवत्संयोगोत्पत्तिनिमित्तं कर्म II3/2/70
सूत्र संख्या :70
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार शरीर की उत्पत्ति का कारण पूर्वजन्म के कर्म हैं, ऐसे ही परमाणुओं के संयोग से सृष्टि बनने का कारण भी पूर्वसृष्टि के कर्म है। जैसे मनुष्य का शरीर पूर्व जन्म के कर्मों से बनता हैं, ऐसे सृष्टि के सब स्थावर और जड्ढम शरीर कर्मानुसार ही बनते हैं। अर्थात् सब शरीर जीवात्माके कर्मफल भोगने के लिए हैं।
व्याख्या :
प्रश्न - यदि हम कर्म और ईश्वर को ने मानकर पच्चभूतों के मिलाप को ही सृष्टि का कारण मानें तो इसमें क्या हानि हैं ?
उत्तर - पच्चभूत जड़ हैं, उनमें एक प्रकार की शक्ति रह सकती हैं, परस्पर विरुद्ध दो शक्तियां नहीं रह सकतीं। यदि संयोग उनके मिलाप से होता है तो वियोग का कारण क्या है ? इसके अतिरिक्त यदि पच्चभूत ही कारण होते, जीवों के कर्म और ईश्वर इस सृष्टि का निमित्त कारण न होते, तो सब शरीर एक जैसे बनने चाहिए थे और सबको एक सा सुखःदुख होता, परन्तु ऐसा नहीं हैं। यह शरीर और कर्मफल की भिन्नता ही ईश्वर और जीव के पूर्वकृत कर्मों को सिद्ध कर रही है। पुनः इसी की पुष्टि करते हैं:-