DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :पूर्वकृतफला-नुबन्धात्तदुत्पत्तिः II3/2/64
सूत्र संख्या :64

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पूर्व जन्म में जो मन, वाणी और शरीर से कर्म किये हैं और उससे जो धर्माऽधर्म और उनका फल सुखःदुख का भोग उत्पन्न हुआ है, वही इस जन्म के होने का निमित्त कारण है। क्योंकि शरीर में उत्पन्न होते ही भोग का आरम्भ हो जाता है, जो बिना किसी निमित्त के नहीं हो सकता। इसलिए कार्यरूप शरीर और उसके भोग से पूर्वकृत कर्मों का अनुमान होता है, क्योंकि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। अतएव पच्चभूत इस शरीर का उपादान कारण है, न कि निमित्त कारण:

व्याख्या :
प्रश्न - जब इस शरीर का नाश हो जाता है, तो धर्माधर्म के संस्कार किस में रहते हैं ? उत्तर- सूक्ष्म शरीर अर्थात् मन में। प्रश्न - जब जीवात्मा इस शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाता है, तो उसके साथ क्या जाता हैं ? उत्तर-सूक्ष्म शरीर और उसमें रहने वाले संस्कार। प्रश्न - सूक्ष्म शरीर नित्य है वा अनित्य ? उत्तर - सूक्ष्म शरीर प्रकृति का कार्य होने से अनित्य है, किन्तु ईश्वरीय नियमानुसार मुक्तिपर्यन्त रहता हैं, मुक्ति में नहीं रहता। अब वादी आक्षेप करता है: