सूत्र :न रूपादीनामितरेतरवैधर्म्यात् II3/2/58
सूत्र संख्या :58
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूपादि गुणों से चेतनता को विलक्षण मान कर जो उसके शारीरिक गुण होने का निषेध किया गया हैं, वह ठीक नहीं, क्योंकि शरीर के गुण रूप और गुरुत्वादि भी एक दूसरे से भिन्न और विलक्षण है। जबकि शरीर के भिन्न-भिन्न गुणों में परस्पर विरोध होने पर भी उनको शरीर का गुण माना जाता है, तो चेतनता (बुद्धि) का रूपादि से विरोध होने पर उसको शरीर का गुण क्यों न मान लिया जाय। इसका उत्तर देते हैं: