सूत्र :न युगपदनेकक्रियोपलब्धेः II3/2/61
सूत्र संख्या :61
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह कथन कि एक साथ अनेक ज्ञान न होने के कारण मन एक है, ठीक नहीं। क्योंकि एक साथ न केवल बहुत से ज्ञान किन्तु बहुत सी क्रियायें भी देखी जाती हैं। एक मनुष्य मार्ग में चलता हुआ कुछ पढता हुआ जाता है, पक्षियों के शब्द सुनता हैं, पथिकों से बातचीत करता हैं, कहां जाना है इस बात को सोचता हैं, ऐसे ही और भी बहुत से विचार और काम एक साथ करता जाता है। अतएव यह कहना कि एक साथ या एक काल में बहुत से ज्ञान या काम नहीं हो सकते, ठीक नहीं, अतः मन अनेक हैं। इसका उत्तर देते हैं: