सूत्र :ऐन्द्रियकत्वाद्रूपादीनामप्रतिषेधः II3/2/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी ने जो यह कहा हैं कि शरीर के गुणों में भी परस्पर विरोध हैं, यह ठीक नहीं। क्योंकि सब शरीर के गुण इन्द्रियों से ग्रहण किये जाते हैं, इन्द्रिय ग्राह्म होना उनमें एक ऐसा धर्म हैं जो सब में पाया जाता है। एक ही शरीर में रहने और इन्द्रियों से ग्रहण किये जाने के कारण रूपादि गुण सजातीय हैं। चेतनता (बुद्धि)का किसी इन्द्रिय से ग्रहण नहीं होता, इसलिए वह शरीर का गुण नहीं हो सकती, किंतु अतीन्द्रिय आत्मा का धर्म है।
व्याख्या :
यहां तक बुद्धि की परीक्षा हुई, अब मन की परीक्षा आरम्भ करते हैं। मन प्रति शरीर में एक है वा अनेक ? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं: