सूत्र :शरीरगुणवैधर्म्यात् II3/2/57
सूत्र संख्या :57
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर के गुण दो प्रकार के हैं, एक प्रत्यक्ष जैसे रूपादि, दूसरे अप्रत्यक्ष जैसे गुरुत्वादि, परन्तु चेतनता इन दोनों से विलक्षण है। यह मन का विषय होने से इन्द्रियों से, ग्रहण नहीं की जाती और ज्ञान का विषय होने से अप्रत्यक्ष भी नहीं। इसलिए चेतनता शरीर का धर्म नहीं। वादी आक्षेप करता हैं: