सूत्र :प्रतिद्वन्द्विसिद्धेः पा-कजानामप्रतिषेधः II3/2/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . पाक से जो गुण उत्पन्न होते हैं, वे पूर्व गुणों के विरोधी होते हैं, अर्थात् बीज में जो उत्पन्न होने का गुण है, वह पाक होने पर नहीं रहता। शारांश यह कि पूर्व गुणों के साथ पाकज गुणों का कुछ सम्बन्ध नहीं रहता । परन्तु शरीर में चेतनता के विरुद्ध कोई दूसरा गुण देखा नहीं जाता। यदि चेतनता शरीर का गुण होती तो वह जब तक शरीर है तब तक उसमें रहती, परन्तु शरीर का धर्म नहीं। इसी अर्थ की पुष्टि में दूसरा हेतु देते हैं: