सूत्र :शरीरव्यापित्वात् II3/2/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कुल शरीर में चेतनता व्यापक है अर्थात् शरीर का कोई भाग ऐसा नहीं, जिसमें चेतनता न हो तो क्या शरीर के सारे अवयव चेतन माने जायेंगे ? यदि शरीर के प्रत्येक अवयव में चेतनता की उपलब्धि होने से उनका चेतन माना जाएगा तो एक शरीर में अनेक चेतन होने से उनका ज्ञान भिन्न-भिन्न होगा, किन्तु ऐसा नहीं है इसलिए चेतनता शरीर का धर्म नहीं। अब इस पर आक्षेप करते हैं: