सूत्र :क्रमवृत्ति-त्वादयुगपद्ग्रहणम् II3/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मन परिच्छिन्न होने से एक देशी है, इसलिए एक ही बार उसका सब इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता, जिसके कारण सब इन्द्रियों के विषयों का एक साथ ज्ञान नहीं होता। जब इन्द्रिय के साथ मन मिलता है, तब उसी के विषय का ज्ञान होता है और जिसके साथ नहीं मिलता उसका ज्ञान नहीं होता। पुनः इसी की पुष्टि करते है:-