सूत्र :कर्माकाशसाधर्म्यात्संशयः II3/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पिछले आह्निक में आत्मा, शरीर और इन्द्रियों की परीक्षा करके अब बुद्धि की परीक्षा आरम्भ करते है। पहले इस बात का विचार करते हैं कि बुद्धि नित्य है वा अनित्य ?
कर्म और आकाश के समान बुद्धि में भी स्पर्शत्व धर्म नहीं है, परन्तु इन दोनों में कर्म अनित्य और आकाश नित्य है, अब यह सन्देह होता है कि बुद्धि कर्म के समान अनित्य है अथवा आकाश के समान नित्य ? दूसरा सन्देह का कारण यह भी है कि कहीं पर तो शास्त्र में आत्म गुण होने से बुद्धि को नित्य बतलाया गया है और कहीं इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से उत्पन्न होने के कारण उसको अनित्य कहा गया है, इनमें कौन सा पक्ष ठीक है। प्रथम बुद्धि का नित्यत्व स्थापन करते हैः-