सूत्र :न युगपदग्रहणात् II3/2/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि वृत्ति (बुद्धि की किरणें) और वृत्तिमान् (बुद्धि) में अभेद माना जावे तो बुद्धि के स्थिर होने से वृत्तियां भी स्थिर माननी पडे़ंगी औरवृत्तियों के स्थिर होने से एक समय में अनेक विषयों का ज्ञान होना चाहिए, परन्तु यह असम्भव है, इसलिए वृत्ति और वृत्तिमान् एक नहीं हो सकते। फिर इसी आशय की पुष्टि करते है:-