सूत्र :स्फटिकान्यत्वाभिमानवत्तदन्यत्वाभिमानः II3/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे लाल, पीले, हरे आदि रंग वाले पदार्थों के संयोग से स्फटिक वैसा ही दीख पड़ता है, वास्तव में स्फटिक न लाल है, न पीला, न हरा, किन्तु वह श्वेत है, ऐसे ही भिन्न-भिन्न विषयों के संसर्ग से वृत्ति भी अनेक प्रकार की सी उपलक्षित होती है, वास्तव में वृत्ति एक ही है। अब इसका उत्तर देते हैं:-