सूत्र :न हेत्वभावात II3/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . स्फटिक का जो दृष्टान्त दिया गया है, वह अहैतुक होने से ठीक नहीं, क्योंकि स्फटिक में लाल, पीले ही आदि रंग की भ्रान्ति होती है, न कि ज्ञान, जब भ्रान्ति का कारण मालूम हो जाता है, तब कोई भी स्फटिक को लाल, पीला या हरा नहीं समझता। परन्तु इन्द्रियों से जो विषयों का ज्ञान होता है, वह निश्चित और सर्वत्र एकसा उपलब्ध होता है, उसमें कहीं भ्रान्ति या सन्देह नहीं होता, क्योंकि भ्रान्तियुक्त या सन्देहात्मक होने से वह प्रमाण ही नहीं होता, क्योंकि भ्रान्तियुक्त या सन्देहात्मक होने से वह प्रमाण ही नहीं मानाजाता। इसके अतिरिक्त साकार होने से स्फटिक में दूसरी वस्तु का प्रतिबिम्ब पड़ सकता है, परन्तु बुद्धि निराकार है, उसमें किसी का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता। अतएव अहैतुक होने से यह दृष्टान्त वृत्ति और वृत्तिमान को एक सिद्ध नहीं कर सकता।
अब क्षणिकवादी शंका करता है:-