सूत्र :अप्रत्यभिज्ञानञ्च विषयान्तरव्यासङ्गात् II3/2/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब मन किसी इन्द्रिय के विषय में लगा हुआ होता है तब उसको किसी दूसरे इन्द्रिय के विषय का ज्ञान नहीं होता। मन की लगावट ही विषयों के ज्ञान का कारण है, इससे भी वृत्ति और वृत्तिमान का भेद सिद्ध है, अन्यथा एक मानने से लगावट नहीं हो सकती। अब मन के विभृत्व का खण्डन करते है:-