DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :अप्रत्यभिज्ञाने च विनाशप्रसङ्गः II3/2/5
सूत्र संख्या :5

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : प्रत्यभिज्ञान के निवृत्त होने पर वृत्तिमान् का भी नाश मानना पड़ेगा और ऐसा होने पर अन्तःकरण ही न रहेगा, क्योंकि वादी वृत्ति और वृत्तिमान् में भेद नहीं मानता, तब वृत्ति के नष्ट होने पर वृत्तिमान् क्योंकर रह सकेगा। अतएव ये दोनों एक नहीं हो सकते। अब एक समय में अनेक ज्ञानों के न होने का कारण कहते:-