सूत्र :विषयप्रत्यभिज्ञानात् II3/2/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . किसी देखी हुई वस्तु को देखने से जो स्मरण होता है कि यह वही वस्तु है, जिसको मैनें पहले देखा था, इसको प्रत्यभिज्ञा कहते हैं, इस प्रत्यभिज्ञा से सिद्ध होता है कि बुद्धि नित्य न होती तो उसमें प्रत्यभिज्ञा कभी हो ही नहीं सकती। क्योंकि ज्ञान उत्पन्न होकर नष्ट हो जाते, फिर उनका स्मरण कैसे होता, अतएव बु़द्धि नित्य है। अब इसका खण्डन करते हैः-