सूत्र :तद्व्यवस्थानं तु भूयस्त्वात् II3/1/71
सूत्र संख्या :71
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस भत का जिस इन्द्रिय के साथ अधिक सम्बन्ध है, उसी भूत के गुणों का उस इन्द्रिय से ज्ञान होता है और वह इन्द्रिय उसी भूत का कार्य समझा जाता है। जैसे तेज चक्षु की शक्ति बढ़ती है, इसलिए वह तेज का ही कार्य समझा जाता है। बस अधिक सम्बन्ध होने के कारण ही ही इन्द्रिय अपने कारण विषय को ग्रहण करते हैं, दूसरों के विषयों को नहीं। अपने-अपने गुणों को इन्द्रिय उनकी सहायता से ही ग्रहण कर सकतें हैं-