सूत्र :सगुणानामिन्द्रियभावात् II3/1/72
सूत्र संख्या :72
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : घ्राणदि इन्द्रिय जबकि पृथ्व्यिादि भूतों का कार्य है, तो उनमें भी गन्धादि गुण विद्यमान है, फिर बिना किसी बाह्य वस्तु की विद्यमानता के उनमें गन्धादि की उपलब्धि क्यों नहीं होती? इसका उत्तर यह है कि अपने गुणों के सहित ही घ्राणादि में इन्द्रियत्व है, यदि गुणों को अलग कर दिया जाय तो फिर उनमें इन्द्रियत्व धर्म ही न रहे। क्योंकि घ्राण अपने गुण गन्ध की सहायता से ही बाहर के गन्ध को ग्रहण करता है। यदि उसे अपने सहचरी गन्ध की सहायता न हो तो वह कभी उसका ग्रहण न कर कसे। क्रूा काररण है कि इन्द्रिय अपनआन्तरिक गुणों को ग्रहण नहीं करते, किन्तु बाह्य गुणों को ग्रहण करते है? इसका उत्तरः-