सूत्र :पूर्वपूर्वगुणोत्कर्षात्तत्तत्प्रधानम् II3/1/70
सूत्र संख्या :70
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पृथ्वी के चार गुण बतलाये गए हैं, गन्ध, रस, रूप और स्पर्श, इनमें पहला गन्ध अत्कृष्ट होने से प्रधान हैं, इतर रस, रूप और स्पर्श गौण होने से अप्रधान और ऐसे ही रस, रूप और स्पर्श ये तीन गुण जल के हैं, जिनमें पहला रस प्रधान और दूसरे दो अप्रधान हैं। एंव तेज के रूप और स्पर्श इनके गुणों में पहला रूप प्रधान है, दूसरा स्पर्श अप्रधान। बस इनमें जो जिसका प्रधान गुण है, वही उसके इन्द्रिय से ग्रहण किया जाता है, अन्य नहीं। यही कारण है कि एक इन्द्रिय से अनेक गुणों का ग्रहण नहीं। पुनः इसी की पुष्टि करते हैं-