सूत्र :संसार्गाच्चानेकगुणग्रहणं II3/1/67
सूत्र संख्या :67
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि पृथ्वी, में अपना एक ही गुण गन्ध है, तथापि उसमें जल, अग्नि और वायु के परमाणु मिले हुए हैं, इसलिए इनका संसर्ग होने में इनके गुण भी उसमें माने गये हैं। वस्तुतः कार्यरूप पृथ्वी में ही ये चार गुण पाये जाते हैं, कारण में नहीं। इसी प्रकार कार्यरूप जल में ही तीन गुण माने गए हैं कारण रूप में नहीं। कारण रूप द्रव्यों में संसर्ग न होने से केवल अपना ही गुण रहता है। इनका संसर्ग अनियम है, या नियम पूर्वक? इसका उत्तर देते हैं-