सूत्र :एकैकश्येनोत्तरोत्तरगुणसद्भावादुत्तरोत्तराणां तदनुपलब्धिः II3/1/66
सूत्र संख्या :66
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे पृथ्वी, जल, तेज वायु और आकाश म से ये पांच भूत बतलाये गए हैं, ऐसे ही गन्ध, रस, रूप स्पर्श और शब्द त्रम से इनके पांच ही गुण हैं अर्थात् पृथ्वी का गुण ग्रन्थ है, जल का रस, तेज का रूप, वायु का स्पर्श आकाश का शब्द गुण है और जो जिसका गुण है, उसी का ज्ञान उसके कार्यभूत इन्द्रिय से होता है, जैसे घ्रात से गन्ध का, रसना से रस का, आंख से रूप का, त्वचा से स्पर्श का और कान से शब्द का ज्ञान होता है। यदि एक भूत में एक ही गुण हैं, तो फिर 64 वें सूत्र में पृथ्वी के चार, जल के तीन और अग्नि के दो गुण क्यों मानेगए हैं? इसका उत्तर देते हैं-