DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :न सर्वगुणानुपलब्धेः II3/1/65
सूत्र संख्या :65

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : उक्त सूत्रों में जो गुणों का कारण भूतों को बतलाया है वह ठीक नहीं, क्योंकि जिस भूत की इन्द्रिय से जिन-जिन गुणों का सम्बन्ध बतलाया है उनसे रस, रूप और स्पर्श का ज्ञान नहीं होता, केवल गन्ध का ज्ञान होता है। इससे रूप, रस और स्पर्श का पृथ्वी में होना सिद्ध नहीं होता। ऐसे ही जल के इन्द्रिय रसना से रूप और स्पर्श का ज्ञान नहीं होता, केवल रस का ज्ञान होता है। ऐसे ही तेज की इन्द्रिय आंख से स्पर्श का ज्ञान नहीं होता, केवल रूप का ज्ञान होता है। इससे सिद्ध होता है कि भूतों में केवल एक ही एक गुण है, न कि अधिक। इसी की पुष्टि करते हैं-

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