सूत्र :न बुद्धिलक्षणाधिष्ठानगत्याकृतिजातिपञ्चत्वेभ्यः II3/1/62
सूत्र संख्या :62
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बुद्धि ज्ञान को कहते हैं, वह चक्षुषादि भेदों से पांच प्रकार का है, जब ज्ञान पांच प्रकार का है, तब उसके कारण भी पांच ही होने चाहियें। (2) इन्द्रियों अधिष्ठान (स्थान) भी पांच ही हैं, (3) गतिभेद भी जिनसे विषयों का ज्ञान होता है, पांच ही हैं, (4) आकृति भी पांच इन्द्रियों की भिन्न-भिन्न है। (5) जाति (कारण) भी पांच हीं हैं अर्थात् श्रोत्र का आकाश, त्वचा का वायु, चक्षु का अग्नि, चिहा का जल और घारण का पृथ्वी। जब कारण पांच हैं, तब उनका कार्य एक कैसे हो सकता है, अतएव पांच इन्द्रिय हैं, न कि एक। इन्द्रियों का कारण पंचभूत हैं, अब यह दिखलाया जाता हैं--