सूत्र :न तदर्थबहुत्वात् II3/1/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन्द्रियों के पांच ही विषय नहीं, किन्तु अनेक हैं। जैसे शीत, उष्ण, कोमल और कठ़ोर आदि से स्पर्श कई प्रकार का है और लाल, पीला, काला और हरा इत्यादि भेदों से रूप भ कई प्रकार का है, ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक भेदों से शब्द भी कई प्रकार का है। कडवा, मीठा, खट्टाऔर तीखा आदि भेदों से रस के भी कई भेद हैं और सुगन्ध और दुर्गन्ध आदि भेदों से गन्ध भी कई प्रकार का है। जब अर्थ अनेक हैं तो उनके ग्राहक इन्द्रिय भी अनेक होने चाहिएं न कि पांच। अब इसका उत्तर देते हैं-