DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :न युगपदर्थानुपलब्धेः II3/1/56
सूत्र संख्या :56

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : यदि त्वचा ही एक इन्द्रिय होती तो एक साथ बहुत से विषयों का ज्ञान होता, क्योंकि वह सब शरीर में व्यापक होने सब विषयों का ज्ञान कराने में समर्थ होती। परन्तु ऐसा नहीं हैं, इसलिए अनेक हैं। जो लोग त्वचा ही को एक मानते हैं, उनके मतानुसार अन्धा, बहरा कोई हो ही नहीं सकता। क्योंकि अन्धे और बहरे को भी त्वचा के रूप और शब्द का ज्ञान हो ही जाता है और जिसको रूप और शब्द का ज्ञान हो, उसें अन्धा और बहरा कहना नहीं बन सकता। जब हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि अन्धों और बहरों को रूप और शब्द का ज्ञान नहीं होता तब केवल एक इन्द्रिय मानना अयुक्त है। इस पर और भी युक्ति देते हैं-

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