सूत्र :नेन्द्रीयान्तरार्थानुपलब्ध:II3/1/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि एक त्वचा ही को इन्द्रिय माना जाय तो सब विषयों का उससे ज्ञान होना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता, क्योंकि अन्धे को रूप का ज्ञान और बहरे को शब्द का ज्ञान नही होता। इससे जाना जाता है, न और भी इन्द्रिय है, जिनके होने से उन विषयों का ज्ञान होता है, न होने से नहीं होता। त्वचा से केवल स्पर्श की उपलब्धि होती है, गन्ध रस, रूप औश्र शब्द का ज्ञान उससे नहीं होता। इससे सिद्ध है कि इन्द्रिय अनेक हैं। इस पर वादी फिर आक्षेप करता हैं-