सूत्र :त्वगवयवविशेषेण धूमोपलब्धिवत्तदुप्लब्धिII3/1/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे त्वगिन्द्रिय का एक विशेष भाग धूम की उपलब्धि करता है, ऐसे ही त्वचा का कोई भाग रूप की उपलब्धि करता है। कोई रस की, कोई शब्द की। उस विशेष भाग के विकृत या नष्ट हो जाने पर अन्धे करूप और बहरे को शब्द की उपलब्धि नहीं होती। इसलिए केवल त्वचा को इन्द्रिय मानने में कोई हानि नहीं। अब इसका खण्डन करते हैं-