सूत्र :दृष्टानुमितानां नियोगप्रतिषेधानुपपत्तिः II3/1/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो बातें प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाण से सिद्ध हैं उनमें भी मीन मेष निकालना या यों कहना कि ऐसा चाहिए, ऐसा न होना चाहिए, ठीक नहीं है। जैसे कांच का आवरण होने से दूसरी तरफके पदार्थ दीखते हैं, भित्ति के आवरण में नहीं दीखते यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध हैं अब इसमें आक्षेप करना कि कांच के आवरण में क्यों दीखते हैं, या भित्ति के आवरण में क्यों नहीं दीखते बिल्कुल असंगत है। क्योंकि प्रत्येक पदार्थ की बनावट और दशा भिन्न-भिन्न है, इस लिए सब में एकसा नियम हो सकता।
इस विषय को यहीं समाप्त करके इस बात का विवेचन किया जाता है कि इन्द्रिय एक है व अनेक? प्रथम संशय का कारण कहते हैं-