सूत्र :स्थानान्यत्वे नानात्वादवयविनानास्थानत्वाच्च संश-यः II3/1/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन्द्रियों के स्थान पृथक-पृथक होने और अनेक स्थानों में अनेक द्रव्यों के देखने से और एक ही अवयवी को भिन्न-भिन्न स्थानों में देखने से यह संदेह उत्पन्न होता है कि इन्द्रिय एक है व अनेक? इसका तात्पर्य यह है कि इस देह में जो इन्द्रिय हैं, उसके स्थान अलग-अलग हैं, सन्देह यह होता है कि इन स्थानों में एक एक ही इन्द्रिय अवयवी रूप से व्यापक है वा भिन्न-भिन्न स्थानों मे भिन्न-भिन्न इन्द्रिय काम करते हैं? एकेन्द्रियवादी कहता हैं-