सूत्र :तदनुपलब्धेरहेतुः II3/1/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि दीपक के समान आंख की भी किरणें होतीं, तो वे दीपक की ज्योति के समान उपलब्ध होतीं। जब किरणों की उपलब्धि ही नहीं होती तब उनका मानना व्यर्थ है। हमको तो गोलक और पुतली के अतिरिक्त आंख में और कुछ नहीं दीखता, अतएव यही चक्षुरिन्द्रिय हैं। अब इसका उत्तर देते हैं-