सूत्र :रश्म्य-र्थसंनिकर्षविशेषात्तद्ग्रहणम् II3/1/32
सूत्र संख्या :32
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : चक्षु तैजस इन्द्रिय है इसलिए उसकी किरणें तेज की किरणों से मिलकर दृश्य वस्तु में व्यापक हो जाती हैं जिससे छोटे-बड़े पदार्थों का प्रत्यक्ष होता है। दृष्टान्त हम दीपक का दे सकते हैं, दीपक छोटा होता है, परन्तु उसकी ज्योति जहां तक आवरण नहीं होता वहां तक फैल जाती है, ऐसे ही आंख की पुतली भी यद्यपि छोटी होती हैं, तथापि उसकी ज्योति दूर तक फैल सकती है। यदि आंख अभौतिक होती तो आगे-पीछे दांये-बायें सब तरफ को देखती और आवरण भी उसकी दर्शन शक्ति को नहीं रोक सकता था। इससे सिद्ध हैं कि आंख अभौतिक है। अब इस पर शंका करते हैं-