सूत्र :कृष्णसारे सत्युपलम्भाद्व्यतिरिच्य चोपलम्भात्संशयः II3/1/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आंख में जो काले रंग की पुतली हैं, उसके होने पर रूप का ग्रहण होता है, न होने पर नहीं, इससे मालूम होता है कि यह पुतली ही आंख है और वह पुतली भौतिक है, इसलिए आंख का भी भौतिक होना सिद्ध हे, एक पक्ष तो वह हुआ, दूसरा पक्ष यह है कि आंख की पुतली का विषय से जब कुछ व्यवधान (फासला) होगा, तभी उसका ग्रहण हो सकेगा, अन्यथा यदि कोई वस्तु आंख की पुतली से मिला दी जाय तो कदापि उसका ग्रहण हो सकेगा। इससे यह मालूम होता है कि यह पुतली तो आंख के भीतर ही रहती है, बाहर नहीं जाती, परन्तु रूप का ग्रहण तब होता है,-जब वृत्ति बाहर निकल कर विषय में तदाकार हो जाती हैं, और वह वृत्ति इस पुतली से पृथक है। इससे इन्द्रियों के अभौतिक होने का अनुमान होता है, क्योंकि अप्राप्त और दूर वस्तु को ग्रहण करना भौतिक पदार्थ का काम नहीं। इसलिए यह संशय उत्पन्न होता है कि इन्द्रिय भौतिक है या अभौतिक? अगले सूत्र में इन्द्रियों को अभौतिक सिद्ध करते हैं-