सूत्र :पार्थिवाप्यतैजसं तद्गुणोपलब्धेः II3/1/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : श्रुति के प्रमाण से भी शरीर का पार्थिव होना सिद्ध होता है, वह श्रुति का प्रमाण यह है ‘सूर्यन्ते चक्षुर्गच्छतात्‘ पृथ्वी ते शरीरम्‘ इत्यादि। इस श्रुति में जहां यह कहा गया है कि सूर्य में तेरी आंख जावे वहां पृथ्वी में शरीर का जाना कहा गया है। कार्य सदा अपने कारण में लीन होता है और इसी को नाश कहते हैं। जब शरीर पृथ्वी का कार्य हैं, तो वह नष्ट हो जाने पर अवश्य पृथ्वी में मिलेगा। इस श्रूति से तथा ‘भस्मान्तूं शरीरम्‘ इत्यादि यजुर्वेद की श्रुतियों से शरीर का पार्थिव होना सिद्ध है। अब इन्द्रियों की परीक्षा आरम्भ करते हैं। प्रथम इस प्रश्न पर विचार किया जाता है कि इन्द्रिय भौतिक हैं वा अभौतिक ?