सूत्र :द्रव्यगुणधर्मभेदाच्चोपलब्धिनियमः II3/1/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बहुत से द्रव्य ऐसे होते हैं कि जिनका प्रत्यक्ष होता है और बहुत से ऐसे भी होते हैं कि जिनका प्रत्यक्ष तो नहीं होता, किन्तु अपने गुण से पहचाने जाते है। जैसे जल और अग्नि व परमाणु किसी को प्रत्यक्ष नहीं दीखते, किन्तु वे अपने शीत या उष्ण स्पर्श से जाने जाते हैं। इसी प्रकार चक्षु इन्द्रिय भी प्रत्यक्ष नहीं दीखता, किन्तु अपनी दर्शनशक्ति से पहचाना जाता है। फिर इसी की पुष्टि करते हैं-