सूत्र :पार्थिवं गुणान्तरोपलब्धेः II3/1/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : देह का भौतिक होना तो सर्वसम्मत हैं, परन्तु पांचों (पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश) सामान्य रूप से इसका उपादान है, या इनमें कोई विशेष हैं ? इसके उत्तर में सूत्रकार कहते हैं। यद्यपि यह देह पच्चभूतात्मक हैं, तथापि पृथ्वी इसका विशेषरूप से उपादान है। अन्य अप तेज आदि इसके निमित्त कारण हैं, उपादान नहीं। इसका कारण यह है कि देह में जलादि के गुण द्रवत्वादि नहीं पाये जाते, पृथ्वी के काठिन्य और गन्धादि गुण प्रत्यक्ष उपलब्ध होते हैं, अतः यह देह पार्थिव है ?
व्याख्या :
प्रश्न - क्या शरीर में केवल पार्थिव ही परमाणु होते हैं, जलादि के नहीं ?
उत्तर - पृथ्वी मे तो पार्थिव प्रधान ही शरीर होते हैं, अन्य लोकों में जलादि प्रधान शरीरों का होना माना गया है। यद्धपि संयोग सब भूतों का होता है, तथापि पृथ्वी में पार्थिव अंश ही प्रधान हैं। इसी की पुष्टि में अन्य हेतु भी देते हैं:-